बरसों से हम अपने ही काशाने में जलते हैं
एक चराग़े-तन्हा हैं, वीराने में जलते हैं.
किस मस्ती से महफ़िल में जामो-मीना चलते हैं
हम ख़ामोश तने-तन्हा मयख़ाने में जलते हैं.
दिल की लगी कुछ ऐसी है बुझती नहीं बुझाने से
कितने शोले सीने के, तहख़ाने में जलते हैं.
सदियां गुज़रीं हम ऐ 'नाज़' इतिहासों में रौशन हैं
यानी नामे-औरत से हर ख़ाने में जलते हैं.
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