मयकशी छोड़ी इन आंखों में उतर जाने के बाद
ज़िन्दगी पाई नयी हमने तुझे पाने के बाद
मुस्तक़िल तन्हाइयों से हो गई है वाबस्तगी
ये सिला पाया है हमने तुझपे दिल आने के बाद
अब ज़माना हो मुख़ालिफ़ इसका कोई ग़म नहीं
हूं मैं राहे-इश्क़ में दुनिया को ठुकराने के बाद
इश्क़ की शाख़ों पे ख़ुशियों के समर आते नहीं
ग़म से रिश्ता कर लिया है तुझको अपनाने के बाद
'नाज़' दर्दे इश्क़ पाया है बड़े अरमान से
ज़िन्दगी की हर ख़ुशी क़ुर्बान हो जाने के बाद
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