Wednesday 30 October 2019

50 साल पहले गिरा था झुमका


50 साल पहले गिरा था झुमका

झुमका बरेली में ही बार-बार क्यों गिरता है? इसी सवाल को जहन में रखकर दूर-दूर से सैलानी बरेली की सरजमीं पर कदम रखते ही पूछते हैं कि आखिर झुमका गिरा कहां था। पूछने की वजह यही है कि चाहें अपने समय की मशहूर अदाकारा साधना हों या माधुरी दीक्षित इनके झुमके बरेली में आकर ही गुम हुए। 1966 में फिल्म ‘मेरा साया’ में, ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’ गीत हो या कुछ वर्ष पहले माधुरी दीक्षित की कमबैक फिल्म ‘आजा नच ले’ का ‘मेरा झुमका उठा के लाया यार वे, जो गिरा था बरेली के बाजार में’, के अंतर्गत झुमका बरेली में ही गिरने की शिकायत नायिका ने की है। सवाल उठता है आखिर यह झुमका गिरा कब? क्योंकि इन नायिकाओं का न तो बरेली से कोई नाता है और न ही इनकी किसी फिल्म में ही बरेली का जिक्र। मगर इनका भी क्या कुसूर, गीत लिखने वालों ने झुमका गिराने की मुफीद जगह बरेली को ही पाया। मशहूर गीतकार राजा मेहदी अली खान जिन्होंने ‘मेरा साया’ के इस गीत को लिखकर रातों-रात बरेली को सुर्खियों में ला दिया था, उनका बरेली से कोई ताल्लुक नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने अपने गीत में बरेली का जिक्र किया। दरअसल, झुमका इलाहाबाद के एक कवि की प्रेयसी का था जो बरेली के बाजार में गिरा था, क्योंकि बात कवियों की थी तो माहौल में फैल गयी और गीत की रचना का रूप ले लिया। फिलहाल, मामला अब झुमके को लेकर नहीं बल्कि इसके गिरने की जगह को लेकर सुर्खियों में है। बरेली विकास प्राधिकरण शहर के डेलापीर चौराहा पर झुमके की प्रतिकृति लगवाने की कवायद कर रहा है जिससे शहर और झुमके की पहचान को सिंबल के तौर पर खड़ा किया जाए और लोगों को जवाब मिल सके कि झुमका बरेली के इस बाजार में गिरा था। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि चूंकि झुमका कुतुबखाना बाजार में गिरा था और गीत भी इसी तंग बाजार को लेकर लिखा गया इसलिए यह पहचान इस बाजार से जुड़नी चाहिए।
बात कुछ पुरानी तो है मगर कई लोग इसकी तस्दीक करते हैं कि असल में यह झुमका तेजी बच्चन का था। तेजी बच्चन अभिनेता अमिताभ बच्चन की मां हैं। हरिवंश राय बच्चन से उनके विवाह से पहले दोनों का बरेली आना हुआ था। बरेली के प्रसिद्ध बाल साहित्यकार निरंकार सेवक से हरिवंश राय बच्चन की गहरी दोस्ती थी। उनसे मिलने के लिए अक्सर हरिवंश राय बरेली आया करते थे। दरअसल, तेजी बच्चन से उनके विवाह कराने में निरंकार सेवक का बड़ा हाथ था। निरंकार सेवक की पुत्रवधु पूनम सेवक कहती हैं, ‘यह विवाह हुआ ही निरंकार जी की कोशिशों से था।’ एक बार उनके कहने पर ही हरिवंश राय और तेजी बच्चन बरेली आये थे। इसी दौरान दोनों में नजदीकियां हुईं और बात विवाह तक पहुंच गयी। इस बीच प्रेम का जो अंकुर फूटा उसी से प्रेरित होकर एक दिन तेजी के मुंह से निकल गया कि, ‘मेरा झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में।’ उनके यह कहने का आशय शायद यह रहा हो कि वह प्रेम में अपनी सुध-बुध खो बैठी हैं और ऐसे में उनको अपने झुमका गिरने का भी पता नहीं चला। हालांकि यह भी हो सकता है कि बरेली के बाजार की तंग गलियों से होकर गुजरने की वजह से उनका झुमका गिरा हो, जैसा कि कुछ लोगों का कहना है। खैर, साहित्य के गलियारों से कोई बात निकलती है तो फसाना बनती ही है। झुमका गिरने की इस घटना का जिक्र गीतकार राजा मेहदी अली खान तक पहुंचा और ‘मेरा साया’ के गीत लिखने के वक्त उन्होंने इसी वाकिये को गीत की शक्ल दे दी। इत्तेफाक से यह गीत मशहूर भी बहुत हुआ। हालांकि झुमका किसका गिरा यह बात पर्दे में रही लेकिन इस गीत के बहाने बरेली का बाजार जरूर मशहूर हो गया।
फिलहाल, वह झुमका कब का गिर चुका, मिला या नहीं इसकी तस्दीक आज तक नहीं हो सकी। हालांकि बरेली विकास प्राधिकरण ने वह झुमका पाया डेलापीर चौराहे पर। शायद यही वजह है कि वह इस चौराहे पर झुमके की बड़ी-सी प्रतिकृति लगाएगा। विरोध इसी बात को लेकर है। दरअसल, डेलापीर पर आज भी आभूषणों से संबंधित कोई बाजार है ही नहीं। फल मंडी और हाईवे जरूर है और शायद यही वजह है कि बीडीए इसी जगह पर बरेली की पहचान के तौर पर झुमका और इस जैसी अन्य चीजों की प्रतिकृति लगाने की बात कर रहा है। बहरहाल, बीडीए की 14  मीटर की परिधि में झुमका की प्रतिकृति लगाने की योजना है। इस बाबत झुमके की डिजाइन मंगाई है और सर्राफा व्यावसायियों से झुमके की ऐसी प्रतिकृति बनाने को कहा गया है जिसमें सर्मा, मांझा, जरी-दरदोजी जैसी शहर की मशहूर चीजें भी शामिल हों। दरअसल, इसके जरिये बीडीए की योजना है कि वह डेलापीर को बाजार के तौर पर विकसित कर खरीदारों को आकर्षित कर सके। वहीं कुतुबखाना का तंग बाजार मुगलकाल से ही महिलाओं के बाजार के नाम से मशहूर रहा है। एक के बाद एक तंग गलियों में महिलाओं के बनाव-श्रंगार से लेकर सोने-चांदी के आभूषण तक इस बाजार में मिलते हैं। एक के बाद एक छोटी-छोटी दुकानें, बाहर तक फैले हुए बाजार आज भी वैसे ही हैं जैसे बरसों पहले थे।
निरंकार जी से मेरे संबंध उस समय और घनिष्ठि हो गये थे जब वह अमर उजाला में संपादकीय लिखा करते थे। वह बाल साहित्यकार थे और मैं अपनी कविताओं के सिलसिले में उनसे मिला करता था। तभी उन्होंने कई बार हरिवंश राय जी से अपनी दोस्ती का जिक्र किया था। ऐसे में तेजी जी के झुमके वाली बात भी उनके मुंह से सुनी थी। जहां तक झुमका प्रतिकृति की बात है तो कायदे से तो वह कुतुबखाना पर ही लगनी चाहिए लेकिन कुतुबखाना पहले ही इतना तंग बसा हुआ है कि यहां कोई प्रतिकृति लगायी ही नहीं जा सकती।
रमेश गौतम, नवगीतकार, बरेली
बाबू जी (निरंकार सेवक) और हरिवंश जी की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है। अक्सर आते और घर पर ठहरते भी थे। ऐसे ही एक दिन योजना बनी कि हरिवंश जी का तेजी जी से विवाह करवा दिया जाए। इसी दौरान एक दिन झुमका की घटना भी हुई। रही झुमका की प्रतिकृति लगने की बात तो डेलापीर से इसका कोई मतलब ही नहीं है। यह कुतुबखाना पर ही लगनी चाहिए।
पूनम सेवक, पुत्रवधु निरंकार सेवक
_______________________
पहले भी गिर चुका है झुमका
1947 में फिल्म ‘देखो जी’ में सबसे पहले ऐसा ही एक गीत फिल्माया गया था। इस गीत को वली साहेब ने लिखा था इसके बोल थे, ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, होय झुमका गिरा रे, मोरा झुमका गिरा रे,’। इस गीत को शमशाद बेगम ने गाया था। हालांकि न तो वह फिल्म चली और गीत भी गुमनाम होकर रह गया। इसके अलावा पाकिस्तान में भी इसी तर्ज पर एक गीत बना था, ‘झुमका गिरा रे कराची के बाजार में’, 1963 में फिल्म ‘मां के आंसू’ में इस गीत को जगह मिली थी। मुशीर काजमी और शबाब केरानवी के लिखे इस गीत को लोगों ने काफी पसंद किया था लेकिन 1966 की ‘मेरा साया’ के आशा भोंसले के गाये गीत की मिठास को लोग आज तक नहीं भूले हैं।

No comments:

Post a Comment